9/5/20

"मजबूत विपक्ष, लोकतान्त्रिक- ढांचे की सर्वथा मांग !"- श्री मनोज बत्तरा -बर्बाद इंडिया / मनोज बत्रा (एडिटर)

करोड़ों पाठकों वाले "दैनिक ट्रिब्यून "ने, अपने द्वारा पुरस्कृत लेखक मनोज बत्तरा के विचारों को, फिर प्रमुखता से किया प्रकाशित !

"अपने संकट को, अवसर में बदले कांग्रेस !"-श्री राजकुमार सिंह

"मजबूत विपक्ष, लोकतान्त्रिक- ढांचे की सर्वथा मांग !"- श्री मनोज बत्तरा 

दिनांक -5 सितम्बर ,2020 .
राजपुरा -चंडीगढ़(पंजाब ).  (ईश्वर आज़ाद द्वारा ). 

     बहुत बड़ी सर्कुलेशन वाले और बेहद सम्मानित पत्र "दैनिक ट्रिब्यून" से पुरस्कृत ,बर्बाद इंडिया  न्यूज़ के मुख्य संपादक,फिल्म-निर्देशक,पत्रकार व साहित्यकार  मनोज बत्तरा के विचारों /प्रतिक्रिया को ,आज "दैनिक ट्रिब्यून " के सम्पादकीय -पृष्ठ पर ,'आपकी राय' कॉलम के अंतर्गत,'सोचने का वक़्त 'शीर्षक के साथ,प्रमुखता से प्रकाशित किया गया ! जिस पर ख़ुशी जाहिर करते हुए बत्तरा ने कहा कि दैनिक ट्रिब्यून के चंडीगढ़ ,करनाल और गुड़गांव संस्करण के करोड़ो पाठकों में उनका नाम बन रहा है ,ये बड़ी उपलब्धि है !

     आपको बता दें कि दिनांक 2 सितम्बर ,2020 के दैनिक ट्रिब्यून में ,सम्पादकीय -पृष्ठ पर प्रकाशित ,श्री राजकुमार सिंह जी ने अपने लेख"अपने संकट को अवसर में बदले कांग्रेस"  में कहा ,कि दीर्घकालीन राजनितिक विरासत वाली कांग्रेस को इस बात का अहसास होना चाहिए कि पार्टी में उभर रहे असंतोष के सुरों को ताकत में कैसे बदला जायें !यह भी ध्यान रहे कि विपक्ष में रहते हुए पार्टी संघठन को मजबूत करके ही, मोदी सरकार को चुनौती दी जा सकती है !वक़्त की जरुरत है कि पार्टी  संघठन को लोकतांत्रिक स्वरूप देकर असहमतियों के स्वरों को भी सुना जाएँ ! 


   
     इस पर बत्तरा ने अपनी सहमति जताते हुए , प्रतिक्रिया दी ,कि ये लेख मेरे दिल को छू गया !लेख सटीक ,प्रगतिवादी और सकारात्मक सोच वाला था !मजबूत विपक्ष लोकतान्त्रिक- ढांचे की सर्वथा मांग है !कांग्रेस को चाहिए ,कि पार्टी में उभर रहे ,असंतोष और असहमतियों के स्वरों को प्रमुखता दें!वर्तमान परिस्थितियों में ,योग्य व अनुभवी व्यक्ति को अपना नेतृत्व सौंपें !





     पूर्व में दैनिक ट्रिब्यून ,चंडीगढ़ के मुख्य संपादक श्री राज कुमार सिंह द्वारा, अपने प्रमाणित हस्ताक्षर के साथ, सम्मान-स्वरूप, हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री तथा महामहिम राज्यपाल से सम्मानित, डॉक्टर मधुकांत के लघु-कथा-संग्रह"तूणीर " की पुस्तक,बत्तरा को,पुरस्कृत करते हुए  भिजवाई गई थी ! दरअसल ,"चीनी उत्पादों के बहिष्कार की तार्किकता"  विषय पर अपने विचारों के अंतर्गत ,बत्तरा ने चीनी -सामान के बहिष्कार की पुरजोर वकालत की थी और इस बात पर जोर दिया था कि चीनी -सामान का ,जनता से पहले सरकार बहिष्कार करें!  
    6 जुलाई,2020 को बत्तरा के विचारों के आशय का सम्पादित और संक्षिप्त पत्र ,पुरस्कृत पत्र के रूप में,दैनिक ट्रिब्यून के चंडीगढ़ ,करनाल और गुड़गांव संस्करण में  प्रकाशित हुआ था।







चीफ एडिटर आचार्य मनोज बत्तरा





9/4/20

5 %कलियुग में,सांप से डर,चूहा पेड़ पर रहने लगा !-बर्बाद इंडिया / मनोज बत्रा (एडिटर)

सच्ची घटना ! मार्मिक प्रसंग !!

5 %कलियुग में,सांप से डर,चूहा पेड़ पर रहने लगा !

चूहे और गिलहरी ने कराये ,बत्तरा को भूल व पाप के अहसास! रामायण के प्राय अनसुने प्रसंग याद कर ,किया पश्चाताप !

दिनांक -3 सितम्बर ,2020 .
राजपुरा (पंजाब ). (मनोज बत्तरा द्वारा ).

     आज मेरे जीवन की वो सच्ची घटना घटी ,जिसने मुझमें पाप के अहसास कराये और मुझे रामायण-काल की याद दिला दी !
     अभी दो-तीन दिन पहले का ही किस्सा है !मेरे पड़ोस के दो घरों में सांप निकले ,जोकि मानवीय हाथों द्वारा मारे भी गए !दरअसल ,मेरा एरिया सांप ,बिच्छू ,छिपकलियों ,चूंहो ,कीट -पतंगों से भरा हुआ है!मैंने कई बार प्रशासन का ध्यान इस और दिलाया ,पर इसका अभी तक कोई स्थाई समाधान नहीं निकल पाया !
     मैं उस समय हैरान हो गया ,जब हमारी एक सहृदय पड़ोसन ने, मेरे घर आकर ,मुझे बताया कि भैया ,सांप हमारे फ्रिज के ऊपर बैठा था !पहले तो हम डर गए ,क्योंकि हमारे घर छोटा बच्चा है !फिर हमने वह सांप मरवा दिया !आप उस समय घर नहीं थे ,नहीं तो सांप मारने के लिएआपको बुलाते !दरअसल ,सेफ्टी के लिए मैंने पड़ोस में दो बार साँपों को मारा था ,जिसका कि बाद में मुझे अफ़सोस भी रहा ,कि जीव -हत्या ,पाप है !
     खैर ,बातें चल रही थी !पड़ोसन ने बताया कि अगले दिन घरों के पीछे जो पेड़ है ,उन्होंने उस पर एक सांप को, तीन फुट ऊपर तक चढ़ते देखा है !मुझे समझते देर न लगी कि सांप पेड़ से चढ़कर ,दीवार से टप्प कर ,घरों में घुस रहे है !पड़ोसन ने आगे मुझसे प्रार्थना की ,कि भैया ,आप घरों के पीछे ,जो शोरूम है ,उनसे कहकर पेड़ कटवाओ !और बत्तरा साहब खुश हो गए कि मौहल्ले में मेरी कितनी इज्जत है !
     चलो भाई,शोरूम वालों से इस सम्बन्ध में बात हुई और वे सब ,मामले की गंभीरता को समझते हुए मान गए !और पांच लोगों ने मिलकर ,घरों के पीछे के 7 -8 सामान्य और फलदार पेड़ काट डालें,ताकि सांप पेड़ों से चढ़कर ,घरों में न घुसे !कुछ पेड़ों को  जड़ से और कुछ को 3 -4 फुट तक ऊपर तने तक ,काटा गया !
     मैं छत पर खड़ा पेड़ों को काटने की सारी कार्रवाही देख रहा था ,कि अचानक मैंने देखा कि एक पेड़ के ऊपर लगे, एक घौंसले में २ -3 चूहे बैठे है !आसपास पॉलिथीन के लिफाफे है और कुछ गंदगी भी है !कुल्हाड़ियों की आवाज सुनकर वे सब डरकर ,नीचे भाग गए !मुझे समझते देर न लगी कि चूहों को खाने के उद्देश्य से ही ,सांप पेड़ों पर चढ़ रहे है और घरों में भी घुस आते है !शोरूम का बगीचा ,आसपास गंदे नालों ,खेतों ,छप्पड़ के कारण साँपों से घिरा रहता है !संभवत ,साँपों के डर से ,जीवन -मोह के चलते चूहें ,पेड़ पर रहने लगे हो !



     इस घटना को देखकर ,मन में विचार भी चल रहे थे कि देखो ,अभी कलियुग लगभग 5 %ही गया है और चूंहे पेड़ों पर रहने लगें !रामायण -काल की भी याद आ रही थी !रामचंदर जी ने सीता मैया से कहा था कि "ऐसा कलियुग आयेगा ,हंस चुगेगा दाना -तिनका ,कौवा मोती खायेगा !"



     मेरा विचारक मन आगे भी सोच रहा था ,कि प्रकृति का चक्र तो देखों ,सांप ,चूहे को खाता है ,हम सांप को खाते भी है और मार भी डालते है !सांप और मानव कितने पापी है ,ये विचारणीय प्रश्न है !
    किन्तु अब एक बात तो समझ आती है मुझे ,कि प्रकृति ने सांप को मुख्यता मांसाहारी बनाया ,तो उसे चूहे को मारने का हक़ है ,ये कोई पाप नहीं हुआ !और मानव सांप को सुरक्षा की दृष्टि से मारें ,तो पाप नहीं है और बेवजह मारे ,तो पाप है !परिस्थितयों के अनुसार ,पाप और पुण्य की परिभाषा बदल जाती है !वेदों में ,जीव हत्या को पाप बताया गया है ,बुद्धिमान और विवेकशील इंसान की कोशिश ये होनी चाहिए कि जीव हत्या न ही करें और सम -भाव से,सब प्राणियों में आत्मा का अस्तित्व स्वीकारतें हुए ,जीने का अधिकार प्रदान करें !क्योंकि पाप -बोध ,आत्म-ग्लानि ,समस्त प्राणियों में स्वयं के श्रेष्ठ होने का अहम ,मूढ़ता आदि ,उसके भक्ति -मार्ग में बाधक है !



     उक्त विचारों की कश्मकश मेरे अंदर चल ही रही थी ,कि क्या देखता हू ,एक नन्हीं -सी ,प्यारी -सी गिलहरी ,उन कटे हुए पेड़ के तनों पर ,मस्ती से चढ़ने लगी !कटा हुआ तना देखकर ,डरकर ,बड़ी हैरानी से घबराकर कि ये क्या हुआ ,आखिर पेड़ गया कहाँ ?वह कटे तने से उतरकर ,कहीं और भाग गई !सारा दृश्य देख मेरा मन दुःखी हो गया कि क्या तुझे ,चूहे और गिलहरी का आशियाना छीनने का कोई हक़ था !क्या पर्यावरण को नुकसान देकर तूने अच्छा किया !सीता माता ने अपने पुत्रों लव-कुश को समझाते हुए कहा था कि हरे पेड़ों से लकड़ियां मत काटो ,ये पेड़ भी जीव है !जलाने के लिए सूखी लकड़ियों का प्रयोग करों!



     आगे मन में ये विचार भी कौंध रहे थे कि अपने मौहल्ले और अपने बीवी-बच्चों की सुरक्षा तो तूने देखी ,पर इन नन्हे जीवों की सुरक्षा का क्या !इनके आशियाने का क्या !
     रामायण -काल का एक और भी प्रसंग याद आ रहा था कि सीता माता को पाने के लिए ,समुद्र बांधने के लिए ,राम-सेतू का कार्य जोरों पर था!नर ,वानर ,रीछ -भालू आदि सभी अपना सहयोग दे रहे थे !कि तभी रामचंद्र जी ने देखा कि एक नन्ही गिलहरी ,बार-बार समुन्दर में गोता लगाकर ,अपने शरीर को गीला करती है और फिर रेत में लेटकर ,रेत को अपने शरीर से चिपकती है !फिर शरीर से चिपकी रेत से, पुल के पत्थरों के बीच की दरारों को भरने की कोशिश करती है !इस मासूम गिलहरी की कर्मठता और अपने प्रति श्रद्धा -भाव देखकर राम जी ,गिलहरी को अपनी गोद में बिठाकर ,प्यार से ,अपने हाथ से सहलातें है !आज भी गिलहरियों के शरीर पर ,तीन सफ़ेद धारियां ,भगवान राम की अँगुलियों की याद दिलाती है !



     जब से ये प्रसंग मैंने सुना था ,तब से नन्ही और मासूम गिलहरियों के प्रति मेरी अपार श्रद्धा रही है !पर आज मेरे कारण उसका आशियाना उजड़ गया !गिलहरी का ही क्यों ,चूहे का भी आशियाना मेरे कारण ही उजड़ा !
     अंत में ,सारी कश्मकश का मैंने यही हल सोचा कि हम बुद्धिमान और विवेकशील प्राणी है ,किन्तु मन की मूढ़ता ,अहम ,अज्ञानता ,अपनी सुविधा देखने आदि कारणों के चलते ,पर्यावरण और जीवों को नुक्सान दे देते है !यदि हम अपने घरों की दीवारों को ही ऊँचा करवाने की सोचते ,तो  पेड़ और चूहे व् गिलहरी के आशियाने बच सकते थे !मुझे अपनी भूल का अहसास था !और रही बात सांप और चूहे के प्रकृति -चक्र की ,तो उसमे दखलंदाजी शायद नैतिक नहीं है !


चीफ एडिटर आचार्य मनोज बत्तरा



9/3/20

पत्रकार विर्क की ममतामयी माता का देहांत !"बर्बाद इंडिया "टीम ने दी ,सच्ची श्रद्धांजलि ! -बर्बाद इंडिया / मनोज बत्रा (एडिटर)

"बर्बाद इंडिया "टीम ने दी ,सच्ची श्रद्धांजलि !

पत्रकार विर्क की ममतामयी माता का देहांत !

दिनांक -2 सितम्बर ,2020 . 
राजपुरा (पंजाब ). (मनोज बत्तरा द्वारा ). 

पत्रकार गुरशरण सिंह विर्क 
     न्यू प्रेस क्लब ,राजपुरा के उपाध्यक्ष व दैनिक पहरेदार के पत्रकार श्री गुरशरण सिंह विर्क की माता जी श्रीमती अंग्रेज कौर का, आज सुबह देहांत हो गया !वे संक्षिप्त रूप से बीमार चल रही थी !इससे विर्क का परिवार गहरे सदमे में है !स्वयं विर्क ने अपनी वृद्ध माँ की आत्मा की शांति के लिए ,ईश्वर के चरणों में अरदास की है !शहर के अनेकों गणमान्य व्यक्तियों ने विर्क के परिवार को सांत्वना दी है!


विर्क की माता जी का फाइल फोटो 
     

    'बर्बाद इंडिया 'चूँकि उन्हें व्यक्तिगत जानता था ,इसलिए हमारी समस्त टीम की और से ,उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि !दरअसल वे एक ममतामयी माँ और एक हंसमुख इंसान थी ! 

   





चीफ एडिटर आचार्य मनोज बत्तरा


9/2/20

"अपनी लड़ाई,हमें खुद लड़नी पड़ती है!"-शिल्पा 'शैली' -बर्बाद इंडिया / मनोज बत्रा (एडिटर)

"बर्बाद इंडिया"की उप सम्पादक शिल्पा 'शैली ' और मुख्य सम्पादक मनोज बत्तरा के बीच हुआ ,फिर एक और टेली कॉलिंगनार !

"अपनी लड़ाई,हमें खुद लड़नी पड़ती है!"-शिल्पा 'शैली' 

दिनांक -2 सितम्बर ,2020 . 
राजपुरा -चंडीगढ़ (पंजाब ). (मनोज बत्तरा द्वारा )

     "बर्बाद इंडिया "की उप सम्पादक शिल्पा 'शैली ' और मेरे (मुख्य सम्पादक मनोज बत्तरा के) बीच आज हुआ ,फिर एक और टेली कॉलिंगनार !सकारात्मकता की जीवित मूर्ति और उच्च -मानवीय गुणों की खान शिल्पा 'शैली'जी ने मुझसे कहा कि "बत्तरा साहब ,पॉजिटिवटी की शिक्षा का सारा श्रेय, आपने मुझे दे दिया !दरअसल पॉजिटिवटी आपके अंदर ही थी !"
     इस बात का श्रेय न लेना ,उनका बड़प्पन और महानता ही है !मैंने आगे कहा -"सच है ,पॉजिटिवटी मेरे अंदर ही थी ,विषम परिस्थितियों या यूँ कहूं कि जीवन के थपेड़ों से डरकर ,कहीं भाग गई थी !मन के किसी कोने में ,गधे बेचकर सो रही थी !आपने सहजता से जीवन में आकर ,उसे जगा दिया !आप द्वारा प्रदत्त जीवन के 'सकारात्मकता- मूल -मंत्र' को आधार मानकर ही ,विषम परिस्थितियों से लड़ रहा हूँ और अपने जीवन को गति और दिशा दे रहा हूँ !इस हेतू आपका हार्दिक अभिनन्दन और साधुवाद !" मैंने आगे एक उदाहरण भी प्रस्तुत किया कि जिस प्रकार ,अपनी शक्तियों को भूले बैठे हनुमान जी को ,जामवंत ने शक्तियों बारें याद दिलवाकर ,उन्हें सीता माता की खोज हेतू ,विशाल समंदर लंघवा दिया था ,उसी प्रकार आपने भी ,मुझमें छिपी सकारत्मकता की शक्ति को जागृत कर ,अविस्मरणीय सहयोग किया है !मेरी इस बात पर शिल्पा जी ,खिलखिला दी !


व्यक्तिगत कारणों से शिल्पा "शैली " के स्थान पर,प्रतीक -रूप में
अभिनेत्री  शिल्पा शैट्टी का चित्र लगाया गया है ! 


     "बत्तरा साहब ,इंसान को खुद अपनी लड़ाई आप लड़नी पड़ती है !बस ,जरुरत है ,स्वयं के अंतर्मन में जागृति ,चिंतन -मनन ,सहनशीलता और धैर्य की !"शिल्पा जी आगे बोली ! 
     सच ही तो कहा, शिल्पा जी ने!यहाँ मुझे भारतीय सिंगर हर्षिता सिंह द्वारा ,पाकिस्तानी सिंगर मोमिना मुस्तेंसन का लिखा गीत "जी लिया "याद आ रहा है ,जिसका कि केंद्रीय -भाव यह था कि जीवन में आप सुख -दुःख ,दोनों देखोगें !हर परिस्थिति में आपको अपने अंदर झाकना होगा !कश्मकश में ,उलझनों में ,विषम परिस्थितियों में ,आपको खुद से ही लड़ना होगा ,खुद को जगाना होगा ,अपनी शक्तियां को पहचाना होगा !जो मुश्किल है ,उसी रास्ते को चुनकर, जीवन को आगे दिशा देनी होगी !



     हमारें टेली कॉलिंगनार की चर्चा आगे बढ़ रही थी !
     "कर्म -फलों से उत्पन्न विषम परिस्थितियों के कारण ,जीवन -साथी भी आपका साथ छोड़ दे !नफरत करें ?"मैंने कहा !
     शिल्पा जी ने ,मेरे इस प्रश्न पर थोड़ी देर के लिए ,ख़ामोशी धारण कर ली !पर वे कुछ सोचकर बोली -"मैं ये सोचती हूं कि रिश्तों में यदि विश्वास ख़त्म हो जाये ,तो रिश्तों को कैसे ठीक करूँ !"
     "फ़ोर्स से रिश्तें कभी सहज नहीं होते !अंतिम सांस तक उनके सहज होने का इन्तजार होना चाहिए ,यही  रिश्तों के प्रति आपकी सच्ची श्रद्धा होगी "-मेरी बात सुनकर ,शिल्पा जी ने हामी भरी !पर ये भी सच है कि -

"जिंदगी के सफ़र में ,गुजर जाते है,जो मक़ाम !फिर नहीं आतें ,फिर नहीं आतें !"

     किसी कारण से हमारा फोन कट गया और हमारी चर्चा आगे न बढ़ सकी !पर मुझे अपने एक बिहारी मित्र शंकर भाई की याद आ गई ,वे कहा करते थे कि "जब रिश्तें उलझने शुरू हो जाएँ ,तो उन्हें वहीं छोड़ दों !ऐसा करने से रिश्तें ,उतने ही बने रहते है ,जितने कि वे है !ऐसे रिश्तें खत्म नहीं होते !सही वक़्त आने पर ,रिश्तों को सही किया जा सकता है!"क्योंकि शिल्पा जी ,"रिश्तों के भी रूप बदलते है !"
    कम पढ़ें शंकर भाई ने भी जीवन की इतनी बड़ी शिक्षा मुझे प्रदान की !नमन, उनके जीवन में रिश्तों के प्रति दृष्टिकोण को !
    बेशक हमारी बात आगे नहीं हुई ,पर शिल्पा जी के पास होने का अहसास ,काफी देर तक मुझमें बना रहा !मुझमें सवाल उठ रहे थे कि क्या हम रिश्तों के बिना जी सकतें है ?मैं तो बिल्कुल भी नहीं! मुझे तो तलाश है ,अपने जीवन में सहज और ईमानदार रिश्तों की ,जो जीवन -भर साथ चलें!
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 कलिंगनार का शेष -भाग  !


दिनांक -3 सितम्बर ,2020 . 
राजपुरा -चंडीगढ़ (पंजाब ). (मनोज बत्तरा द्वारा )


"बर्बाद इंडिया"की उप सम्पादक शिल्पा 'शैली ' और मुख्य सम्पादक मनोज बत्तरा के बीच हुआ कलिंगनार प्रकाशित हो चुका था ,जिसे पढ़कर शिल्पा जी ने मुझे फिर कॉल कर दिया !

     शिल्पा जी बोली -"मुझे नहीं पता,कि शंकर भाई ने किस वे में अपनी उक्त बात बोली !मैं समझती हू कि कुछ रिश्तें जीवन में ,ऐसे होते है ,जिन्हें छोड़ा नहीं जा सकता !ऐसे रिश्तें जब उलझनें शुरू हो जाये ,तो धीरे -धीरे बड़ी सावधानी से ,सहजता और समझदारी से शॉट आउट करने चाहिए !बत्तरा साहब ,आप खुद भी तो कहतें है कि मैं रिश्तों में ,लॉन्ग टाइम चलता हूँ !"
     "बिलकुल ,शिल्पा जी! रिश्तें बहुत नाजुक होते है !कोई भी रिश्ता टाइम माँगता  है !"मैंने भी अपनी सहमति जताई !

     ("धीरे -धीरे प्यार को बढ़ाना है,हद से गुजर जाना है !")

    आगे मैंने शिल्पा जी को अमूल मक्खन लगातें हुए कहा -"आप सचमुच रियल पर्सन है !और आपकी ये बात भी आज मान लेता हूँ कि हम दोनों एक जैसे है !मैंने कभी रिश्तों के आगे ,पैसों को भी कभी अहमियत नहीं दी !"
    घर पहुँचते -पहुँचते ,मैं  आधी बातें तो भूल गया !यार ,कोई मुझे यादाश्त बढ़ाने वाला टॉनिक तो पिला दो !
     खैर ,अंत में मैंने शिल्पा "शैली "जी से प्रार्थना की ,कि सकारात्मकता ,आज समाज की जरुरत है ,इसलिए खुलकर लेखन -क्षेत्र में अपना सहयोग दें !... 
     अंत में ,हमारे वार्तालाप का यहीं निष्कर्ष निकला,मैंने कहा कि "जिसे हम अंत समझते है ,दरअसल वहीँ से जीवन की शुरुआत होती है !सकारात्मकता के साथ ,स्वयं पर विश्वास ,अगर है तो ,सफलता सदैव आपके कदम चूमती है !"
     इस पर शिल्पा जी की सहमति का ,मुझे  पुरस्कार मिला !बस ,हमने बात को यहीं विराम दिया !रियली थैंक्स शिल्पा जी ,शैली जी ,जिनका मन नहीं ,बिल्कुल भी मैली जी ! 


चीफ एडिटर आचार्य मनोज बत्तरा






8/31/20

घरेलू नुस्खे ! सूखी खांसी में ये रामबाण काढ़ा और हमारी दुआएं ,आपको आराम देंगी ! और तला हुआ या मैदे वाला खाया न ,तो देख लेना आप ! -बर्बाद इंडिया / मनोज बत्रा (एडिटर) !

घरेलू नुस्खे !

सूखी खांसी में ये रामबाण काढ़ा और हमारी दुआएं ,आपको आराम देंगी ! और तला हुआ या मैदे वाला खाया न ,तो देख लेना आप !


डिअर साहेब !

     "एक बरष के मौसम चार ,मौसम चार ,पांचवा मौसम प्यार का ,इन्तजार का !"-भारत में एक वर्ष के चार मौसम हो ,या पांचवा मौसम प्यार का भी हो ,तो पाँचों मौसमों में परिवर्तन(प्रेम के वियोग में ) इंसान रोगी हो जाता है !चारों मौसमों में परिवर्तन से इम्यूनिटी कमजोर हो सकती है ! शरीर की इम्यूनिटी  कमजोर होने पर सर्दी ,खांसी और झुखाम,,,,हा -हा ,जुकाम अनिवार्य रूप से हो जाते है !और प्यार में ,प्रेम के वियोग में ,प्रकृति भी बैरी लगती है,दिमाग काम नहीं करता !सुप्त हो जाता है !बीमार हो जाता है !प्यार के वियोग में बीमार मन ,शरीर को भी बीमार कर देता है !... आपको तो मज़ा आने लगा पढ़कर !वियोगी प्यार की इम्यूनिटी ठीक करने के उपाय तो पाठकों, आपको और किसी लेख में बताये जायेंगे ,फिलहाल आप हमारी दुआएँ लीजिये और ये रामबाण काढ़ा/चाय बनाकर पीजिये !हम भी देखते है ,कि आपकी सूखी खांसी कैसे नहीं जाती !आपको आराम नहीं आता !और हाँ,तला हुआ या मैदे वाला खाया न ,तो देख लेना आप !

Home Remedies in Hindi for Dry and Wet Cough | ड्राई कफ और वेट कफ (खांसी)  का घरेलू उपचार - India TV Hindi News

     तुलसी जी के पत्तों को तोड़ने के नियमों का ध्यान रखते हुए ,उनके कुछ पत्ते लें और उन्हें श्रद्धापूर्वक काली -कुलिटी मिर्च ,गौरे -गौरे कनक के आटे के थोड़े -से चोकर,मरियल से मुनक्का और रौबदार मुलेठी के साथ ,जल -देवता की उपस्थिति में, उबला -उबला कर लें ! जब केतली -वेटली में देवता जी का शरीर आधा हो जाएँ ,हवा हो जाये,तो उन्हें कहना ठण्ड रखिये ,ठण्ड रखिये ,अभी रात में आपको छानकर ,मिठ्ठा -मिठ्ठा (शुगर )करके,कोसा -कोसा गर्म करके पीते है ,बस मेरा मुँह मत जलाना ,कृपया !

How To Grow Tulsi Plant At Home In 7 Easy Steps

     इस काढ़े को बनाने में ग्लो ,अदरक /सौंठ ,सौंफ ,दूध,निम्बू-रस ,छोटो इलाइची ,बड़ी इलाइची ,दालचीनी ,हींग ,त्रिफला,मधु मक्खी का थूक (शहद ),सेंधे नमक का पानी भी ,थोड़ी मात्रा में इस्तेमाल कर सकते है !ग्लो युक्त उबला पानी किसी भी तरह के बुखार या कम सेल वाले मरीज ,एक गिलास जितना ले सकते है !3 -4 दिन में खांसी ठीक हो जाएगी !
     तले हुए आलू -शालू ,पकोड़े -शकोडे ,रोल्स-वोल्स ,परांठे -शरांठे जी ,आपने नी खाने !मैं वेखिया सी तवाणु ,कुलचे दी रेडी तें !ब्रेड ,पास्ता , मैगी ,कुलचे ,भठूरे -शतुरें नहीं खाने जी ,मैदे तों बने होंदे जी !खराब करूं !जे खाएं न ,गल्ल नी करनी मैं !


चीफ एडिटर आचार्य मनोज बत्तरा