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9/9/20

शिल्पा के कारण; बत्रा के फ्रिज का मक्ख़न ,थोड़ा कम हुआ !-बर्बाद इंडिया / मनोज बत्रा (एडिटर)

टेली-कॉलिंगनार !

'बर्बाद इंडिया 'की सबसे बड़ी प्रशंसक,शिल्पा  'शैली ',फिर पुरस्कृत !

शिल्पा के कारण; बत्रा के फ्रिज का मक्ख़न ,थोड़ा कम हुआ !

  दिनांक -9  सितम्बर ,2020 
 राजपुरा -चंडीगढ़ (पंजाब ). (शिल्पा 'शैली 'और मनोज बत्रा द्वारा ). 

      रियल और वास्तविक ,उन्हें इंसान कहना अटपटा लग रहा है ,इसलिए रियल और वास्तविक रब जैसे लोगों के अंतर्मन की पहचान ,उनकी आवाज में परिवर्तन से हो जाती है। दरअसल ,वे अंदर से जो, जी रहे होते है ,वो ही उनके चेहरे और आवाज से झलक रहा होता है। आज जब 'बर्बाद इंडिया'की उप -संपादक शिल्पा जी 'शैली'का कॉल आया ,तो उनकी आवाज साफ़ दिखा रही थी ,कि वे अंदर से कुछ उखड़ी हुई -सी थी। इस बात पर, मेरे पूछने पर वे नहीं मानी ,बोली -'नहीं कोई बात नहीं !'यहाँ मैंने उन्हें आवाज सही करने हेतू काढ़ा पीने की सलाह दी !खैर ,बत्तरा साहेब ,तो पूर्व -जन्मों के अंतर्ज्ञान और संस्कारों के धनी है ,अनकही बातें ,कम कही बातों के मर्म को ,गहरे तक समझ जाते है !


व्यक्तिगत कारणों से शिल्पा "शैली " के स्थान पर,प्रतीक -रूप में
अभिनेत्री  शिल्पा शैट्टी का चित्र लगाया गया है !
 


     मैं हैरान तब हुआ ,जब उक्त बात से जुडी बात उन्होंने बोल डाली -'सर ,लगता है इन दिनों आप काफी बिजी रहे ,जो हमारी बात नहीं हुई ,,,,,,पिछले टेलि-कॉलिंगनार का शेष-भाग मैंने पढ़ा !एक-एक बात आपने बड़ी गहराई से ,मर्म के साथ और अंत में निष्कर्ष देकर लिखी !लगता है ,मनोज सर ,आप कागज -पैन साथ रखते हो !'
     मन में उनकी बात सुनकर ,सोच रहा था कि प्यार हो ,दोस्ती हो या फिर कोई भी रिश्ता ,जब आदत बन जाता है ,तो वह अपनी अहमियत खो देता है !'नहीं ,बिजी नहीं था ,कुछ लापरवाही और कुछ संशय के कारण ,आपसे बात नहीं कर पाया !,,,,और जहाँ तक गहराई और मर्म के साथ लिखने का सवाल है ,तो पहले मैं दिये टॉपिक पर लिखता था। पर फिर जीवन के अनुभवों से ,अंतर्ज्ञान हुआ कि नहीं ,दिमाग के साथ दिल से भी लिखो। जो जियो वो लिखो ,ऐसी सच्चाई लिखो ,जो दुनिया के काम आ सके !और खुद में चिंतन -मनन से ,ऐसे निष्कर्ष पैदा करो ,जो आम -जन को ,जीवन की जटिलता में दिशा दे !शिल्पा  जी ,इसी का नाम तो साहित्य है !ऐसा लेखन ,ऐसा साहित्य, जिसमें विश्व का कल्याण और परोपकार छिपा है ! ऐसा साहित्य लिखना-पढ़ना सकारात्मकता पैदा करता है और विश्व-कल्याण और परोपकार की भावनायें ,इंसान को भक्ति की ओर ले जाती है !'
     खैर ,दोस्तों ,जो भी है ,शिल्पा 'शैली जी मेरी और 'बर्बाद इंडिया 'की सबसे बड़ी प्रशंसक है !उनकी स्वादिष्ट आवाज में ,तारीफ सुनकर स्वाद आ जाता है ,मानो ऐसे लगता है ,जैसे कोई बड़ा राष्ट्रिय -पुरस्कार मिला हो ,लिखना सफल हुआ हो !अब शिल्पा जी का सम्मान बनता है, भाई ! मुख्य सम्पादक की हैसियत से मैं उनको   'बर्बाद इंडिया 'की सबसे बड़ी प्रशंसक होने की घोषणा,पुरस्कार सहित करता हूं !
     हमारे बीच का टेलि-कालिंगनार ,अपने पूरे हुस्न पर था।शिल्पा जी बोली -'मेरे बॉस मुझसे बोले ,शिल्पा ,ऐसा आपमें क्या है ,जो काम हम सीनियर होकर भी नहीं कर पाते ,वो आप कर डालते हो !कंपनी के जो ग्राहक किश्तें नहीं भर रहे होते है ,वे आगे -पीछे किश्तें भरने लगते है !'यह सुनकर मैं भी खुश था कि मेरी सखी की ऑफिस में बहुत इज्जत है !खैर,शिल्पा जी ने आगे बॉस से कहा कि 'सर ,कंपनी के ग्राहकों से मेरी बॉन्डिंग अच्छी रहती है,उनकी मजबूरी को समझती हूँ ,किश्त भरने के लिए ,जोर नहीं डालती !सर ,कोई भी समस्या ,सही समय और सही जरिया आने पर ही ,स्वयं  हल होती है !बस ,कंपनी और ग्राहकों को सब्र से काम लेना चाहिए !कंपनी के ग्राहक मुझ पर विश्वास करते है !'उनकी बात बीच में रोक ,उत्सुकता में गलतियां होती रहती है ,मैं बोल पड़ा कि 'विश्वास किया नहीं जाता ,हो जाता है!'
     और इधर मुझे ये भी लग रहा था कि अपने फ्रिज का थोड़ा मक्ख़न आज कुछ और कम करूँ !'दरअसल ,आपकी मधुर और बैलेंस आवाज लोगों पर असर डालती है और वे पॉजिटिव होकर ,एक्टिव हो जाते है !'मैं ये सब उनसे बोला ,मन में यह सब सोचते हुए भी ,कि तैनूं तां निन्द आ जांदी है ,इनहादि ग्लां सुनके ,जिवें सप्प ,सो जांदा है ,बीण दी आवाज तें !
     दरअसल , शिल्पा जी को खुद भी नहीं मालूम ,कि उनकी आवाज में जादू  है ! सुनने वाले में भी ,आवाज की आवृति ,बैलेंस ,मर्म आदि को समझने की शक्ति होनी चाहिए !वैसे तो कोई इंसान पूर्ण नहीं होता ,पर नवजोत सिंह सिद्धू के स्टाइल में कहूं तो,'मोहतरमा ,तुसी कम्प्लीट हो ,सारियां नूं करदे ,पलित्त हो !'भई ,अपनी तो बेहतरीन इंसान वाली तलाश इनसे पूरी हो गयी है !

     "बत्तरा साहब ,बस करो आप !इतनी तारीफ भी कोई मुँह पे करता है ?" 
     -"अरे , पगले मन !मैं तो सखी साहिबा की तारीफ ,फ़ोन  पे कर रहा हूँ !"

चीफ एडिटर आचार्य मनोज बत्तरा



9/4/20

5 %कलियुग में,सांप से डर,चूहा पेड़ पर रहने लगा !-बर्बाद इंडिया / मनोज बत्रा (एडिटर)

सच्ची घटना ! मार्मिक प्रसंग !!

5 %कलियुग में,सांप से डर,चूहा पेड़ पर रहने लगा !

चूहे और गिलहरी ने कराये ,बत्तरा को भूल व पाप के अहसास! रामायण के प्राय अनसुने प्रसंग याद कर ,किया पश्चाताप !

दिनांक -3 सितम्बर ,2020 .
राजपुरा (पंजाब ). (मनोज बत्तरा द्वारा ).

     आज मेरे जीवन की वो सच्ची घटना घटी ,जिसने मुझमें पाप के अहसास कराये और मुझे रामायण-काल की याद दिला दी !
     अभी दो-तीन दिन पहले का ही किस्सा है !मेरे पड़ोस के दो घरों में सांप निकले ,जोकि मानवीय हाथों द्वारा मारे भी गए !दरअसल ,मेरा एरिया सांप ,बिच्छू ,छिपकलियों ,चूंहो ,कीट -पतंगों से भरा हुआ है!मैंने कई बार प्रशासन का ध्यान इस और दिलाया ,पर इसका अभी तक कोई स्थाई समाधान नहीं निकल पाया !
     मैं उस समय हैरान हो गया ,जब हमारी एक सहृदय पड़ोसन ने, मेरे घर आकर ,मुझे बताया कि भैया ,सांप हमारे फ्रिज के ऊपर बैठा था !पहले तो हम डर गए ,क्योंकि हमारे घर छोटा बच्चा है !फिर हमने वह सांप मरवा दिया !आप उस समय घर नहीं थे ,नहीं तो सांप मारने के लिएआपको बुलाते !दरअसल ,सेफ्टी के लिए मैंने पड़ोस में दो बार साँपों को मारा था ,जिसका कि बाद में मुझे अफ़सोस भी रहा ,कि जीव -हत्या ,पाप है !
     खैर ,बातें चल रही थी !पड़ोसन ने बताया कि अगले दिन घरों के पीछे जो पेड़ है ,उन्होंने उस पर एक सांप को, तीन फुट ऊपर तक चढ़ते देखा है !मुझे समझते देर न लगी कि सांप पेड़ से चढ़कर ,दीवार से टप्प कर ,घरों में घुस रहे है !पड़ोसन ने आगे मुझसे प्रार्थना की ,कि भैया ,आप घरों के पीछे ,जो शोरूम है ,उनसे कहकर पेड़ कटवाओ !और बत्तरा साहब खुश हो गए कि मौहल्ले में मेरी कितनी इज्जत है !
     चलो भाई,शोरूम वालों से इस सम्बन्ध में बात हुई और वे सब ,मामले की गंभीरता को समझते हुए मान गए !और पांच लोगों ने मिलकर ,घरों के पीछे के 7 -8 सामान्य और फलदार पेड़ काट डालें,ताकि सांप पेड़ों से चढ़कर ,घरों में न घुसे !कुछ पेड़ों को  जड़ से और कुछ को 3 -4 फुट तक ऊपर तने तक ,काटा गया !
     मैं छत पर खड़ा पेड़ों को काटने की सारी कार्रवाही देख रहा था ,कि अचानक मैंने देखा कि एक पेड़ के ऊपर लगे, एक घौंसले में २ -3 चूहे बैठे है !आसपास पॉलिथीन के लिफाफे है और कुछ गंदगी भी है !कुल्हाड़ियों की आवाज सुनकर वे सब डरकर ,नीचे भाग गए !मुझे समझते देर न लगी कि चूहों को खाने के उद्देश्य से ही ,सांप पेड़ों पर चढ़ रहे है और घरों में भी घुस आते है !शोरूम का बगीचा ,आसपास गंदे नालों ,खेतों ,छप्पड़ के कारण साँपों से घिरा रहता है !संभवत ,साँपों के डर से ,जीवन -मोह के चलते चूहें ,पेड़ पर रहने लगे हो !



     इस घटना को देखकर ,मन में विचार भी चल रहे थे कि देखो ,अभी कलियुग लगभग 5 %ही गया है और चूंहे पेड़ों पर रहने लगें !रामायण -काल की भी याद आ रही थी !रामचंदर जी ने सीता मैया से कहा था कि "ऐसा कलियुग आयेगा ,हंस चुगेगा दाना -तिनका ,कौवा मोती खायेगा !"



     मेरा विचारक मन आगे भी सोच रहा था ,कि प्रकृति का चक्र तो देखों ,सांप ,चूहे को खाता है ,हम सांप को खाते भी है और मार भी डालते है !सांप और मानव कितने पापी है ,ये विचारणीय प्रश्न है !
    किन्तु अब एक बात तो समझ आती है मुझे ,कि प्रकृति ने सांप को मुख्यता मांसाहारी बनाया ,तो उसे चूहे को मारने का हक़ है ,ये कोई पाप नहीं हुआ !और मानव सांप को सुरक्षा की दृष्टि से मारें ,तो पाप नहीं है और बेवजह मारे ,तो पाप है !परिस्थितयों के अनुसार ,पाप और पुण्य की परिभाषा बदल जाती है !वेदों में ,जीव हत्या को पाप बताया गया है ,बुद्धिमान और विवेकशील इंसान की कोशिश ये होनी चाहिए कि जीव हत्या न ही करें और सम -भाव से,सब प्राणियों में आत्मा का अस्तित्व स्वीकारतें हुए ,जीने का अधिकार प्रदान करें !क्योंकि पाप -बोध ,आत्म-ग्लानि ,समस्त प्राणियों में स्वयं के श्रेष्ठ होने का अहम ,मूढ़ता आदि ,उसके भक्ति -मार्ग में बाधक है !



     उक्त विचारों की कश्मकश मेरे अंदर चल ही रही थी ,कि क्या देखता हू ,एक नन्हीं -सी ,प्यारी -सी गिलहरी ,उन कटे हुए पेड़ के तनों पर ,मस्ती से चढ़ने लगी !कटा हुआ तना देखकर ,डरकर ,बड़ी हैरानी से घबराकर कि ये क्या हुआ ,आखिर पेड़ गया कहाँ ?वह कटे तने से उतरकर ,कहीं और भाग गई !सारा दृश्य देख मेरा मन दुःखी हो गया कि क्या तुझे ,चूहे और गिलहरी का आशियाना छीनने का कोई हक़ था !क्या पर्यावरण को नुकसान देकर तूने अच्छा किया !सीता माता ने अपने पुत्रों लव-कुश को समझाते हुए कहा था कि हरे पेड़ों से लकड़ियां मत काटो ,ये पेड़ भी जीव है !जलाने के लिए सूखी लकड़ियों का प्रयोग करों!



     आगे मन में ये विचार भी कौंध रहे थे कि अपने मौहल्ले और अपने बीवी-बच्चों की सुरक्षा तो तूने देखी ,पर इन नन्हे जीवों की सुरक्षा का क्या !इनके आशियाने का क्या !
     रामायण -काल का एक और भी प्रसंग याद आ रहा था कि सीता माता को पाने के लिए ,समुद्र बांधने के लिए ,राम-सेतू का कार्य जोरों पर था!नर ,वानर ,रीछ -भालू आदि सभी अपना सहयोग दे रहे थे !कि तभी रामचंद्र जी ने देखा कि एक नन्ही गिलहरी ,बार-बार समुन्दर में गोता लगाकर ,अपने शरीर को गीला करती है और फिर रेत में लेटकर ,रेत को अपने शरीर से चिपकती है !फिर शरीर से चिपकी रेत से, पुल के पत्थरों के बीच की दरारों को भरने की कोशिश करती है !इस मासूम गिलहरी की कर्मठता और अपने प्रति श्रद्धा -भाव देखकर राम जी ,गिलहरी को अपनी गोद में बिठाकर ,प्यार से ,अपने हाथ से सहलातें है !आज भी गिलहरियों के शरीर पर ,तीन सफ़ेद धारियां ,भगवान राम की अँगुलियों की याद दिलाती है !



     जब से ये प्रसंग मैंने सुना था ,तब से नन्ही और मासूम गिलहरियों के प्रति मेरी अपार श्रद्धा रही है !पर आज मेरे कारण उसका आशियाना उजड़ गया !गिलहरी का ही क्यों ,चूहे का भी आशियाना मेरे कारण ही उजड़ा !
     अंत में ,सारी कश्मकश का मैंने यही हल सोचा कि हम बुद्धिमान और विवेकशील प्राणी है ,किन्तु मन की मूढ़ता ,अहम ,अज्ञानता ,अपनी सुविधा देखने आदि कारणों के चलते ,पर्यावरण और जीवों को नुक्सान दे देते है !यदि हम अपने घरों की दीवारों को ही ऊँचा करवाने की सोचते ,तो  पेड़ और चूहे व् गिलहरी के आशियाने बच सकते थे !मुझे अपनी भूल का अहसास था !और रही बात सांप और चूहे के प्रकृति -चक्र की ,तो उसमे दखलंदाजी शायद नैतिक नहीं है !


चीफ एडिटर आचार्य मनोज बत्तरा



7/24/20

बाप में भी होती है ममता -वात्सल्य !-बर्बाद इंडिया / मनोज बत्रा (एडिटर)

सम्पादकीय- 

आचार्य मनोज बत्तरा के कीपैड से !


आप बीता एक सच्चा और मार्मिक प्रसंग! 
    

सहृदय बाप में भी होती है ममता -वात्सल्य !

    "मैया मोरी ,मैं नाहिं माखन खायों !"


     -"तो, किसने खायों ?"

     "मैया मोरी ,कबहुँ बढ़ेगी चोटी ?
     कितनी बार मोहें दूध पियत ,अबहुँ हैं यह छोटी !"

    -"मेरे लड्डू गोपाल !जेकर अमूल दूध पियत,तबहूं बढ़ती न ,तोरी चोटी !" 




     -तो देखा आपने ! वात्सल्य को लिखते -लिखते ,मुझमें भी ममता ,वात्सल्य और भक्ति के भाव आ गए !दरअसल , भक्ति -काल के शिरोमणि और सर्वोत्कृष्ट महाकवि सूरदास जी ,वात्सल्य का कोना -कोना झाँक आयें है !32 विद्याओं और 64 कलाओं से निर्मित ,महान कर्मयोगी  व विष्णु के पूर्ण अवतार भगवान् श्री कृष्ण की भक्ति में डूबे ,जन्मांध सूरदास जी ने अपने मन की आँखों से ,यशोधा मैया और बाल कृष्ण के संबंधों ,लीलाओं और वात्सल्य के उक्त जैसे अनेकों दुर्लभ और अद्भुत चित्र उकेरें है !उन जैसा कवि पुनः मिल पाना संभव नहीं है !
      अब ये भूमिका प्रस्तुत करने के बाद ,आधुनिक युग की "मीरा " महादेवी वर्मा जी के जीवन के उस प्रसंग की ओर , आपका ध्यान आकृष्ट करना चाहता हू ,जिसे बहुत कम लोग जानते है !

    "मैं लेटी थी ,वो मेरे ऊपर लेटा था !
     मैं उठ न सकी ,क्योंकि वो उठ न सका ,क्योंकि वो मेरा बेटा था !"
                                                                           (-महादेवी वर्मा )

      -ये जवाब था ,महादेवी वर्मा जी का ,उन श्रोताओं को, जो कवि-सम्मेलन में उनका काफी देर से इन्तजार कर रहे थे ,उनसे नाराज हो रहे थे !
     महादेवी वर्मा जी के जवाब में ,मर्यादा का अतिक्रमण ,सूक्ष्म -बुद्धि और वाक् -चातुर्य दिख रहा है ,किन्तु वात्सल्य का ऐसा अद्भुत उदाहरण भी, क्या हमें कहीं ओर देखने को मिला है ?

     "आंगन में फूल खिला था कोई ,
     महक माली की थी ,
     पर लूट गया भँवरा !"

      -ये वर्षों पहले मैंने लिखा था ,पड़ोस में हुई, जन्म के समय हुई, एक नवजात शिशु की मौत पर !

     "....जीवन ऐसे भी है,जो जिए ही नहीं !
     जिनको जीने से पहले फिजां खा गई !
     जिंदगी का सफ़र, है ये कैसा सफ़र!
     कोई समझा नहीं ,कोई जाना नहीं। .... "
             (-फिल्म -सफ़र /गायक -किशोर कुमार )

     उस समय मुझे लिखने का नया-नया शौक लगा था !कल्पना -शक्ति मुझमें बहुत थी!उस बच्चें की मौत के प्रति मुझमें जिज्ञासा रही !संवेदना ,दुःख -दर्द था ,पर उतना नहीं ,जितना किसी अपने  के जाने का हुआ मुझे !
 दुनिया के रंग,लोगो का असली चेहरा ,असली संवेदना ,असली दुःख-दर्द, मुझे उत्कर्ष ने सिखाया !उत्कर्ष-मेरा बेटा !36 दिन का मेहमान!



     मुझे उन दिनों समझ कम ही थी ,उस समय दादी के कहने में आकर ,मिसेज की पहली डिलीवरी हमने सरकारी अस्पताल में करवाई !उचित ट्रीटमेंट और सुविधाओं के अभाव आदि के चलते ,बच्चा नाड़वे के साथ लिपटा हुआ पैदा हुआ! डॉक्टरों ने नाड़वा काटकर ,बच्चे को अलग किया ,किन्तु बेटे को साँस की तकलीफ शुरू हो गई!लेडी डॉक्टर ने मुझसे क्षमा भी मांगी ,कि वह जच्चा-बच्चा की ठीक से केयर न कर सकी !उसे डर था कि हम उस पर कोई केस न कर दें !जीवन-मरण ईश्वर  के  हाथों में होता है ,यह सोचकर हमने डॉक्टर को कुछ नहीं  कहा!और हम जल्दबाजी में ,एम्बुलेंस करके, बच्चे को पी जी आई ,चंडीगढ़ ले गए !रास्ते में बच्चे को सांस की तकलीफ बढ़ रही थी!किन्हीं कारणों से ,एम्बुलेंस में रखा ऑक्सीजन -सिलेंडर बच्चे  को लग नहीं पाया!बच्चे की मौत के डर से हम काफी घबरा गए !हमने एम्बुलेंस की सारी खिड़कियां जल्दी -जल्दी खोल डाली ,ताकि बच्चा ताज़ी, तेज हवा में सांस ले सके !घबराहट में उस समय हमे यही सूझा !हमारे पास दूसरा कोई विकल्प भी नहीं था!बस, ईश्वर का सहारा था और हम  उसी से प्रार्थना करते हुए आगे बढ़ रहे थे!
    बच्चे के दादा ने जन्म के समय,उत्कर्ष की जीभ पर शहद से ॐ लिखा और उसका 'उत्कर्ष' नामकरण किया!बाद में ,मैंने कहीं पढ़ा था कि जन्म के समय बच्चे को कोई खाद्य पदार्थ या पेय पदार्थ नहीं  देना चाहिए,क्योंकि इससे उसे नुक्सान होता है !
    दिखने में बेहद सुन्दर ,गोल -मटोल,हल्का-फुल्का। लाल होंठो वाला था , मेरा बेटा !उसके बेहद सहनशील होने का प्रमाण भी , उस समय हमें मिला !दिन में 3-4 बार ग्लूकोस आदि के लिए, जब उसे सुइंया चुभाई जाती ,तो वह रोता  नहीं था!
    बेटे के दिल में 3 m m का छेद था !ट्रीटमेंट के लिए  हम बच्चे को एम्स अस्पताल ,दिल्ली तक ले गए! और मेरे मन में ये बात  भी चल रही थी कि चाहे मुझे अपने शरीर के अंग भी बेचने पड़े ,अमेरिका तक भी ,बच्चे  को बचाने के लिए ,इलाज करवाऊंगा !और ये  एक बाप की बच्चे के लिए ममता - वात्सल्य ही था कि मैंने अपने चाचा से, अपने 50 हज़ार रूपये लेने के लिए कहा -सुनी भी की!
   अंततः बच्चे को इन्फेक्शन हो गया !खून का रंग काला!होंठो का रंग उस समय शायद नीला होने लगा था!बच्चे ने 5 -6 दिन तक पेशाब नहीं किया ,तो नर्सों ने उसके अंग में ,मुलायम और बारीक क्लिनिकली रबड़ की ट्यूब डालकर ,उसका पेशाब बाहर निकाला !उसके अंतिम दिनों में, फैमिली के लोग घर आएं हुए थे !मैं बच्चे के पास अकेला था !उसे सांस की बेहद तकलीफ शुरू  हो गई!डॉक्टर्स ने  कह दिया कि  सांस वाला पम्प रुकना नहीं चाहिए!18 घंटे तक लगातार ,बिना रुके मैं सांस वाला पंप चलाकर ,उसे सांस देता रहा !हाथ का कचूमर बन चुका था!न जाने कैसे सांस वाला पंप, 18 घंटे तक चलाने को,मुझमें इतनी हिम्मत आ गई थी!मुझे था कि यदि मेरा हाथ रुका ,तो बच्चा बचेगा नहीं!ईश्वर से बार-बार प्रार्थना कर रहा था कि मेरे पिछले और अगले समस्त जन्मों के समस्त पुण्य मेरे बेटे को दे दें ,और मेरे बेटे को बचा दें!

UAE-based Indian couple, baby die in Oman accident | Uae – Gulf News

   36 वें दिन नौसिखिए डॉक्टर्स की टीम आई  और ड्रामें  करते हुए उन्होंने ऑक्सीजन तेज कर दी !पहले उस समय मुझे समझ नहीं आया कि उन्होंने क्या किया !... फिर शुरू हुआ बच्चे को बचाने  का ड्रामा!... सब ख़त्म हो चुका था !शायद जानबूझकर डॉक्टर्स ने बच्चे  को मार दिया !सारी उम्र ये सवाल साथ चलता रहा कि क्या मेडिकल साइंस में लाइलाज बिमारियों में रोगी को मारने का अधिकार होता है?
   उसके मरते वक़्त कहीं दूर मद्धम -मद्धम नगाड़े बज रहे थे!मैं सुन्न था!साक्षी -भाव से मेरी आत्मा, मेरे शरीर से अलग होकर, बेटे की मौत के दृश्य को देख रही थी !
  .... परिवार के लोग और कुछ लोकल रिश्तेदार आ चुके थे!हम सब दैनिक भास्कर ,चंडीगढ़- कार्यालय के समीप एक शमशान -घाट में बेटे को दफनाने ले गएँ!
   बच्चे को नहला-धुलाकर ,नए कपडे पहनाकर मेरी गोद में दे दिया गया !और उसकी आत्मा की शांति के लिए मंत्रो-उच्चारण शुरू हो गए !
   इधर मैं बच्चे को चुनड़ियाँ मार रहा था !चुँगटियाँ काट रहा था!और मन में बोल  रहा था कि बेटे ,उठ !नहीं तो ,अब तुझे मिट्टी में दफना देंगें !... नहीं उठा वो !क्यों उठता वो?36 दिन का  साथ  ही तो था हमारा! 36 दिन में जिंदगी और अपने की मौत का सबक मुझे सीखा गया वो!दुनिया का असली चेहरा दिखा गया वो!एक बाप  में भी ममता - वात्सल्य जगा गया वो !हमारी गोद उस पुण्य आत्मा  को पसंद नहीं आई ,तो मैंने उसको धरती माता की गोद  में अर्पित  कर दिया !

My birth story: I am a dad and I delivered my baby by accident ...

   .... मिसेज टूट चुकी थी!उसे सँभालने की जिम्मेवारी मेरी थी !उसको दिलासा देता रहा और मैंने खुद के आंसू पी लिए !
  और इस सारे प्रसंग में लोगो और रिश्तेदारों का सच भी सामने आया!कुछ ने पैसों की सहायता तो देनी चाही ,पर सुसराल और अपने परिवार केअलावा, कोई भी एक रात, हमारे साथ अस्तपताल में, साथ देने के लिए नहीं रुका !चाचे के साथ उन दिनों प्रॉपर्टी को लेकर उठापटक चल रही थी !वो ,दादी और 2 बुआओँ का परिवार बच्चे को देखने तक न आया!एक कजिन साली ने तो न जाने क्यों ,बच्चे की छठी की मिठाई का डिब्बा वापिस भिजवा दिया!बच्चे की मौत पर सब रोने आ गए !ऐसे सब लोगों को छोड़ने का, उस समय फैसला मैंने ले लिया!आज मैं उन अनजान लोगों के साथ जीता हूँ ,जो दिल से मेरा साथ देते है !इज्जत करते है!

     "अपने ही गिराते है ,नशेमन पर बिजलियाँ !नशेमन पर बिजलियाँ !
गैरों ने आके ,दामन थाम लिया है!"

     इन ड्रामों से बिलकुल अलग ,मेरे दिल के काफी करीब मेरी एक कजिन ने मुझसे सही संवेदना और सांत्वना व्यक्त की-"मनोज !ईश्वर फिर देगा !"यह सुनकर मेरे सब्र का बाँध टूट गया और एक बाप की ममता अश्रुओं में बहने लगी!
     आज भी बेटे को याद करते हुए सोचता हु कि भगवान् तूने बेटा वापिस लेना ही था ,तो दिया ही क्यों था!क्या ये उसके और हमारे भी कर्म-फल थे ?हम समाचार -पत्रों में अक्सर पढ़ते है कि स्कूल -बस/वैन आदि के दुर्घटना-ग्रस्त होने से इतने बच्चों की मौत हो गई!इतने बच्चें नदी में डूब गए !हे भगवान् ,इन बच्चों को आप अपने खेल ,अपनी लीलाओं  ,कर्मफलों और मौत आदि से क्यों दूर नहीं रखते? बच्चों को बख्शकर भी तो, आपका संसार चल सकता है!बच्चें  हम माता-पिता की जिंदगी है!हमारा सहारा हैं!हमारे खिलोनें है !हमारी चेतना है और बच्चों के रूप में तेरी ही तो भक्ति है!सृष्टि को आगे बढ़ाने में ,तेरे द्वारा हमें सौंपी गई जिम्मेदारी है!

School Bus Accident in shivpuri, many child injured

    आज किसी के भी बच्चे को चहकते -महकते ,मुस्कुराते -खिलखिलाते देखता हू ,तो उत्कर्ष का गम प्राय भूल जाता हू !बच्चों की मौज-मस्ती ,तुतलाती बातें ,हंसी -मज़ाक,कलरव ,अठखेलियां ,मासूमियत ,सादगी ,भोलापन आदि तरों -ताजगी के साथ जीने की राह दिखाते है!देखने के लिए सूक्ष्म- नेत्र और भाव चाहिए ,बच्चो में ईश्वर के दर्शन हो जायेंगे!

Injury prevention - Introduction | Encyclopedia on Early Childhood ...

   बस ,मन में ये विचार /भाव आता है कि ये दूसरे के बच्चें मेरे कुछ नहीं लगते !इनमें मेरा अंश भी नहीं है !पर इन्होने मेरे चेहरे पर मुस्कान बिखेरी है !मेरे मन में स्फूर्ति भरी है!बस ,यही तो सच्चा रिश्ता है हमारे बीच!दोस्ती ,अपनापन ,सुरक्षा और केयर बनती है बच्चों के लिए!अब इसको उनको कोई रक्त -सम्बन्धी दें या कोई भी इंसान!सचमुच ,बच्चें तो सांझा होते है ,शिल्पा जी!
   समय बड़े-बड़े जख्म भर  देता है !आज उसका सही चेहरा मैं भूल गया हूँ !कभी याद  आने पर आँखें गीली हो जाती है ,जैसे कि अब लिखते -लिखते हो रही है !भाग-दौड़ ,उलझन  में हम उत्कर्ष की एक भी फोटो लें नहीं पाएं !जीवन -भर  ये अफ़सोस भी साथ चलता रहेगा !


उत्कर्ष से छोटी समिधा बिटिया !



चीफ एडिटर आचार्य मनोज बत्तरा