सम्पादकीय-
आचार्य मनोज बत्तरा के कीपैड से!
देश में लोकतंत्र के रक्षक के रूप में,मीडिया को चौथा स्तंभ माना जाता है! पर भारत में मीडिया असंगठित है! मीडिया- कर्मियों की सुरक्षा का कानून लगभग नहीं है!महंगाई के कारण ,पत्र -पत्रिकाओं के प्रकाशन में बेहद कठिनाई आती है!इस क्षेत्र में भी बड़े मगरमच्छ है ,जिनके सामने खड़े होना ,मतलब कि हाथी के सामने चींटी का खड़ा होना है!सरकारी विज्ञापन और बड़ी कम्पनियों के विज्ञापन आदि मिलने में बेहद कठिनाई है!मुझे हंसी भी आती है,कि सविंधान से मिला "विचारो की अभिव्यकिती" का अधिकार कितना महंगा है !
सचमुच ,मीडिया(विशेषकर क्षेत्रीय मीडिया ) की दुर्दशा से अत्यंत दुःखी भी हूँ !इसलिए कुछ नया करने की प्रेरणा हुई हैं !आपका सहयोग अपेक्षित है !
पत्रकारिता:चुनौतीपूर्ण और जोखिमों से भरी !
पत्रकारिता-क्षेत्र अत्यंत चुनौतीपूर्ण और जोखिमों से भी भरा है!हर समय स्वयं के साथ किसी अनहोनी -अप्रिय घटना और असामाजिक -तत्वों से जान का खतरा आदि सदैव बना रहता है।
देश में पत्रकार-सुरक्षा -कानून का मुख्यता अभाव है। फिर भी लोग देश -समाज की सेवा के लिए और मीडिया की शक्ति व स्टेटस को अनुभव करने के लिए पत्रकारिता से जुड़ते है।
समाज -सेवा भी आपका दायित्व !
मीडिया सिर्फ समाचार प्रकाशित करके ,सिर्फ हल्ला बोले या भौंके ,ये मुझे मंजूर नहीं !मीडिया को दोहरी ,तिहरी---भूमिका निभानी होगी।
सम्बंधित अधिकारियों या विभाग को न्यूज़ /रचना आदि की कटिंग /पिक्स अपने लेवल पर अपनी ही ईमेल से या अपने खर्चे पर डाक से भेजनी होगी।
समस्या के समाधान और सामाजिक गतिविधिओ में अपने लेवल पर अपना निस्वार्थ योगदान देना होगा।
चीफ एडिटर आचार्य मनोज बत्तरा https://www.youtube.com/watch?v=B0YAOkRlqHo&t=13s&fbclid=IwAR35oAyFjXlgi9hR-T6N73KxwHaH-mLgdVOI93YOTX1d6G-Ft5KU2ocN6Ws |